10 हजार हो या 94 हजार TET तो सबको करना पडेगा! Supreme Court के आदेश से शिक्षकों में मची खलबली!


सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब किसी भी सरकारी या निजी शिक्षण संस्थान में बिना टीईटी पास किए हुए व्यक्ति को शिक्षक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि वेतनमान चाहे 10,000 रुपये हो या 94,000 रुपये, योग्यता ही सेवा में बने रहने और पदोन्नति का आधार होगी, वेतन का कोई महत्व नहीं रहेगा।

कोर्ट के अनुसार, सभी सेवारत शिक्षकों को दो साल के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। केवल वे शिक्षक, जो पांच साल के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले हैं, उन्हें ही टीईटी से छूट दी जाएगी। यह नियम पूरे देश के शिक्षकों पर लागू होगा और सेवा की निरंतरता तथा पदोन्नति दोनों इससे जुड़ी होंगी।

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच — जस्टिस दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह — द्वारा की गई थी। बेंच ने इस विषय की गंभीरता को देखते हुए इसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच को ट्रांसफर कर दिया है। इसमें अल्पसंख्यक विद्यालयों को लेकर भी कई सवाल उठे हैं कि कौन-कौन से स्कूल इस दायरे में आएंगे।

फिलहाल कई राज्यों ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और महाराष्ट्र शामिल हैं। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के नेता दिनेश शर्मा ने भी रिव्यू पिटीशन दाखिल की है।

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जानकारों के अनुसार, यदि यह फैसला पूर्ण रूप से लागू होता है, तो देशभर में लगभग 20 लाख शिक्षक सेवा के लिए अपात्र हो जाएंगे। वहीं, लगभग चार लाख ऐसे लोग हैं जो टेट पास हैं और कम वेतन पर काम कर रहे हैं — उन्हें इस नियम से बड़ा लाभ मिल सकता है।

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उत्तर प्रदेश में इस फैसले का सबसे अधिक असर बताया जा रहा है। लगभग दो लाख शिक्षकों की नौकरी प्रभावित हो सकती है। राज्य में करीब 70 हजार शिक्षामित्र टीईटी पास हैं और 20 वर्षों से शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। शिक्षा मित्रों का कहना है कि उन्हें नियमित सेवा का अवसर दिया जाए, ताकि बार-बार मानदेय बढ़ाने और नियमितीकरण की मांग से सरकार को राहत मिले और शिक्षकों को स्थायित्व मिले।

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विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में “समान कार्य समान वेतन” के सिद्धांत पर भी विचार करना चाहिए। अगर टीईटी पास शिक्षक सेवा में हैं, तो उन्हें समान योग्यता और समान काम के अनुसार समान वेतन मिलना चाहिए।

कई शिक्षकों ने मानसिक दबाव और असुरक्षा के कारण आत्महत्या जैसे कदम उठाए हैं। जानकारों का मानना है कि अगर सरकार और अदालत संवेदनशील रवैया अपनाए और अनुभवी शिक्षकों को अवसर दे, तो शिक्षा व्यवस्था और स्थिर होगी और मानवीय संकट भी कम होगा।

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अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच पर टिकी हैं, जो इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेगी। लाखों शिक्षक इस फैसले की प्रतीक्षा में हैं कि उन्हें न्याय और स्थिरता कब मिलेगी।

फिलहाल मामला विचाराधीन है और देशभर के शिक्षकों में चिंता के साथ-साथ उम्मीद भी बनी हुई है कि सर्वोच्च अदालत कोई संतुलित और न्यायपूर्ण फैसला देगी।

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