मानवाधिकार आयोग देगा शिक्षामित्रों का साथ? पवन गोलिया पहुंचेंगे दिल्ली


लखनऊ: उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। शासनादेशों की घोषणा और मुख्यमंत्री द्वारा किए गए वादों के बावजूद आज भी जमीनी स्तर पर हालात जस के तस बने हुए हैं। इसी नाराज़गी और निराशा के बीच अब शिक्षामित्र एक बार फिर दिल्ली का रुख करने जा रहे हैं, जहां वे मानवाधिकार आयोग से अपनी समस्याओं को साझा करेंगे।

घोषणाएं हुईं, क्रियान्वयन नहीं

3 जनवरी 2024 को शिक्षामित्रों के लिए मूल विद्यालय वापसी का पहला शासनादेश जारी हुआ था। इसके बाद 5 सितंबर को मुख्यमंत्री ने सम्मानजनक मानदेय और कैशलेस इलाज की सुविधा देने की घोषणा की थी। लेकिन लगभग पूरा साल बीतने के बावजूद इन घोषणाओं पर अमल नहीं हो पाया।
इसी कारण शिक्षामित्रों के बीच नाराज़गी बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि सरकार उनके मुद्दों पर गंभीरता नहीं दिखा रही और न ही उनकी मूल मांगों पर कोई निर्णय ले रही है।

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पवन गोलिया ने कहा – हालात बेहद खराब

हमारे चैनल अटल टीवी से बातचीत में शिक्षामित्र नेता पवन गोलिया ने कहा कि प्रदेश सरकार और प्रशासन शिक्षामित्रों की समस्याओं पर व्यवहारिक रूप से ध्यान नहीं दे रहे।
उन्होंने कहा कि आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से शिक्षामित्र बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। कई साथी गंभीर समस्याओं के चलते अपनी जान तक गंवा चुके हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा।

उन्होंने यह भी कहा कि

“हम हार मान चुके हैं, क्योंकि हम अपने साथियों की मृत्यु नहीं रोक पा रहे। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह अपने कार्मिकों के प्रति संवेदनशील रहे और उन्हें सम्मानजनक जीवन का अधिकार दे। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।”

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दिल्ली पहुंचेंगे शिक्षामित्र

पवन गोलिया ने बताया कि शिक्षामित्रों की ओर से दो दिन के भीतर दिल्ली जाकर मानवाधिकार आयोग में ज्ञापन देने की योजना तैयार की गई है।
उनका कहना है कि शासनादेशों और न्यायालय के आदेशों के क्रियान्वयन न होने पर आयोग से शिकायत की जाएगी। साथ ही न्यायालय की अवमानना से जुड़े पहलुओं पर भी चर्चा होगी।

उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी, सामाजिक भेदभाव और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के कारण शिक्षामित्रों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। ऐसे में अब कानूनी और संवैधानिक रास्तों का सहारा ही अंतिम विकल्प बचा है।

आगे क्या?

शिक्षामित्रों की दिल्ली यात्रा से क्या परिणाम निकलेंगे, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। फिलहाल इतना तय है कि गहरा होता असंतोष और अधूरी घोषणाओं का दर्द शिक्षामित्रों को फिर एक बड़ी लड़ाई की ओर ले जा रहा है।

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