शिक्षामित्रों के मानदेय वृद्धि से जुड़ा बहुप्रतीक्षित मामला 27 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुना जाएगा। इस केस को लेकर पूरे प्रदेश के शिक्षामित्रों में गहरी उत्सुकता और बेचैनी है, क्योंकि अब तक सरकार ने कोर्ट के आदेशों का पूर्ण अनुपालन नहीं किया है।
जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार ने 27 मार्च 2024 को तीन सदस्यीय कमेटी गठित की थी, जिसमें शिक्षा निदेशक को अध्यक्ष बनाया गया था। कमेटी में साक्षरता वैकल्पिक शिक्षा निदेशक, वित्त नियंत्रक (मिड-डे-मील) और परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव को सदस्य नियुक्त किया गया था।
वकील के अनुसार, कमेटी की रिपोर्ट अब सरकार के पास पहुंच चुकी है और “इंटर-डिपार्टमेंटल कंसल्टेशन” यानी विभागों के बीच विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। इसका अर्थ है कि कमेटी ने अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी हैं और अब अंतिम निर्णय सरकार को लेना है।
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पिछली सुनवाई में कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (बेसिक शिक्षा विभाग) या तो आदेश का “फुल कंप्लायंस” (पूर्ण अनुपालन) दाखिल करें या फिर व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हों ताकि चार्ज फ्रेमिंग की कार्रवाई की जा सके।
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अब 27 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में यह तय होगा कि सरकार ने कोर्ट के आदेशों का पालन किया है या नहीं। यदि सरकार एफिडेविट दाखिल कर देती है जिसमें कमेटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई का विवरण हो, तो अदालत संतुष्ट हो सकती है। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो एडिशनल चीफ सेक्रेटरी को कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा और आगे की कार्यवाही तय होगी।
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वर्तमान में बेसिक शिक्षा विभाग में नए अपर मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा हैं, जबकि पूर्व में यह जिम्मेदारी दीपक कुमार के पास थी। दोनों अधिकारियों पर कोर्ट की ओर से कंप्लायंस सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है।
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शिक्षामित्रों को उम्मीद है कि इस बार सरकार कोर्ट में ठोस जवाब देगी और लंबे समय से लंबित वेतनवृद्धि का फैसला सामने आएगा। अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती, तो कोर्ट का रुख सख्त हो सकता है।
