अलीगढ़: परिषदीय स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जिले के खैर क्षेत्र स्थित प्राथमिक विद्यालय पला जरारा में प्रधानाध्यापक दीपिका सक्सेना का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे कक्षा में कुर्सी पर आराम से बैठी हैं और दो छात्राएं हाथ से पंखा झलते हुए नजर आ रही हैं। इस वीडियो के वायरल होते ही शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है।
वीडियो 19 सेकेंड का है, जिसमें स्पष्ट रूप से कक्षा में कोई पढ़ाई नहीं हो रही, बच्चे बेंचों पर नहीं हैं और कुछ बच्चे प्रधानाध्यापक के पास खड़े दिखाई दे रहे हैं। वीडियो में एक व्यक्ति की आवाज भी सुनाई देती है, जो उनसे कुछ सवाल कर रहा है, पर प्रधानाध्यापक जवाब नहीं देतीं।
मंगलवार को यह वीडियो बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के संज्ञान में आया, जिन्होंने तत्काल खैर के खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) सुबोध कुमार को जांच के निर्देश दिए। जांच के दौरान बच्चों, स्टाफ और प्रधानाध्यापक से बयान लिए गए, जिसमें आरोप सत्य पाए गए। इसके बाद प्रधानाध्यापक के निलंबन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
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अभिभावकों में रोष
इस घटना के सामने आने के बाद अभिभावकों में नाराजगी है। उन्होंने कहा कि वे अपने बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजते हैं, न कि शिक्षकों की सेवा के लिए। उनका मानना है कि इस प्रकार की घटनाएं बच्चों के मनोविज्ञान और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
इससे पहले भी अलीगढ़ जिले में इसी तरह का मामला सामने आ चुका है। पिछले वर्ष धनीपुर ब्लॉक के गोकुलपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में एक शिक्षिका द्वारा बच्चों से हाथ के पंखे से हवा कराए जाने की शिकायत हुई थी। जांच के बाद उस शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया था।
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प्रधानाध्यापक का पक्ष
प्रधानाध्यापक दीपिका सक्सेना ने इस वीडियो को गलत तरीके से फैलाया गया बताया है। उनका कहना है कि बच्चे उनसे बहुत स्नेह करते हैं और उन्होंने मना करने के बावजूद हवा करना शुरू कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल का एक शिक्षामित्र व्यक्तिगत द्वेष के चलते यह वीडियो बना रहा है और दूसरे शिक्षकों पर भी इसी तरह के दबाव बना रहा है।
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शिक्षा विभाग गंभीर
BSA ने स्पष्ट किया है कि वे इस प्रकरण को गंभीरता से ले रहे हैं और बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का अनुचित व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह मामला एक बार फिर परिषदीय स्कूलों में अनुशासन और शिक्षकों की नैतिक जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करता है।