मध्यप्रदेश में दिवाली से ठीक पहले उच्च शिक्षा विभाग के फैसले ने सैकड़ों शिक्षकों के सामने रोज़गार संकट खड़ा कर दिया है। राज्यभर में कार्यरत 535 अतिथि विद्वानों को विभाग ने “फॉलेन आउट” कर सेवा से बाहर कर दिया, जिससे शिक्षकों में गहरी नाराज़गी फैल गई है।
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सुरजीत सिंह भदौरिया ने कहा कि कई शिक्षक 20–25 वर्षों से सरकारी महाविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं, जिनकी उम्र 45 से 55 वर्ष के बीच है और वे पीएचडी व नेट योग्य हैं। ऐसे शिक्षकों को नौकरी से हटाया जाना उनके परिवारों के लिए भारी संकट है।
भदौरिया ने कहा, “चालू शिक्षा सत्र में री-डिप्लॉयमेंट के आधार पर 535 प्रोफेसरों को एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में भेजा गया और वहीं नियमित कर दिया गया, लेकिन इसका खामियाजा अतिथि विद्वानों को भुगतना पड़ रहा है। चुनाव के समय नियमितीकरण की घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही वादे भुला दिए जाते हैं।”
उन्होंने 11 सितंबर 2023 की उस घोषणा का हवाला दिया जिसमें तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री (वर्तमान मुख्यमंत्री) डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि अतिथि विद्वानों को ₹1,500 प्रति कार्य दिवस मानदेय के स्थान पर ₹50,000 फिक्स वेतन मिलेगा और किसी को नौकरी से बाहर नहीं किया जाएगा। साथ ही, उन्हें सरकारी कर्मचारियों जैसी सुविधाएं देने का वादा भी किया गया था।
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भदौरिया ने कहा कि हरियाणा सरकार ने अपने अतिथि विद्वानों को 65 वर्ष की आयु तक यूजीसी पे-स्केल और सभी सुविधाएं देकर सुरक्षित भविष्य प्रदान किया है, जबकि मध्यप्रदेश में शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया।
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इस बीच, उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने मंत्रालय में बैठक के बाद बयान जारी करते हुए कहा कि “फॉलेन आउट अतिथि विद्वानों को हर माह दो बार स्थान चयन का अवसर दिया जाएगा और रिक्त पदों की जानकारी पोर्टल पर अपडेट की जाएगी।”
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अतिथि विद्वान संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे आंदोलन तेज करेंगे। कुछ शिक्षकों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगते हुए कहा कि “जब जीविका का आधार ही छिन गया है, तो जीने का क्या अर्थ?”
 
