स्कूल की छत गिरने से मचा कोहराम: 6 बच्चों की मौत, 40 से ज़्यादा अब भी मलबे में फंसे


राजस्थान के झालावाड़ जिले में पिपलोदी प्राइमरी स्कूल की छत गिरने से हुई त्रासदी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस हादसे में अब तक छह बच्चों की मौत हो चुकी है और 15 से अधिक बच्चे घायल हैं। वहीं मलबे में करीब 41 बच्चों के फंसे होने की आशंका अभी भी बनी हुई है। यह हादसा न केवल एक दुखद घटना है, बल्कि यह स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी है।

क्या हुआ पिपलोदी स्कूल में?

घटना सुबह 8 बजे की है, जब बच्चे कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे। अचानक स्कूल की छत भरभरा कर गिर गई। स्कूल में उस समय करीब 70 बच्चे मौजूद थे। राहत और बचाव कार्य के लिए पुलिस, प्रशासन और NDRF की टीमें मौके पर पहुंची हैं। घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। झालावाड़ के एसपी अमित कुमार बुदानिया और जिला कलेक्टर मौके पर स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।


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पहले भी हुए हैं ऐसे बड़े हादसे

झालावाड़ की यह त्रासदी पहली बार नहीं है जब स्कूल की लापरवाही ने मासूम बच्चों की जान ली हो। भारत में ऐसे कई बड़े हादसे हो चुके हैं, जो हमारे सिस्टम की गंभीर खामियों को उजागर करते हैं।

  • डबवाली (हरियाणा), 1995: डीएवी स्कूल के वार्षिकोत्सव में आग लगने से 248 बच्चों की मौत हुई थी। यह देश की सबसे भयावह स्कूल दुर्घटना थी।
  • कुम्भकोणम (तमिलनाडु), 2004: स्कूल की छप्परनुमा छत में लगी आग ने 94 बच्चों की जान ले ली।
  • वडोदरा, गुजरात: बारिश के चलते एक स्कूल की चार मंजिला इमारत का हिस्सा गिरा, जिसमें दो बच्चों की मौत हो गई।
  • दिल्ली, कन्हैया नगर: पुरानी दीवार गिरने से पांच बच्चों की मौत हुई।
  • पाली, राजस्थान, 2024: स्कूल बस और ट्रक की टक्कर में दो लोगों की मौत और 20 बच्चे घायल हुए।
  • राजसमंद, 2025: स्कूली वैन सैलाब में फंसी, बच्चों को मुश्किल से बचाया गया।
  • भुज, गुजरात, 2001: भूकंप में कई स्कूल ढह गए, सैकड़ों बच्चे मारे गए।

क्यों होते हैं ऐसे हादसे?

इन घटनाओं की जड़ में पुरानी, जर्जर और अनदेखी की गई स्कूल इमारतें हैं। रखरखाव में लापरवाही, निर्माण सामग्री में धांधली, डिज़ाइन में कमज़ोरी, और प्रशासनिक लापरवाही इसके मुख्य कारण हैं। स्कूल वाहनों की सुरक्षा भी बड़ी चिंता का विषय है – ओवरलोडिंग, खराब ड्राइवर, और नियमित निरीक्षण की कमी दुर्घटनाओं को दावत देते हैं।

CBSE के नियम और हकीकत

CBSE और अन्य बोर्ड स्कूलों के लिए स्पष्ट सुरक्षा गाइडलाइंस जारी करते हैं। जैसे – हर बच्चे के लिए कम से कम 1 वर्ग मीटर स्थान, स्कूल भवन का न्यूनतम क्षेत्रफल 500 वर्ग फुट, सालाना सेफ्टी ऑडिट, अग्निशमन व्यवस्था, फर्स्ट ऐड ट्रेनिंग आदि। लेकिन ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में इन नियमों का पालन नाममात्र होता है।

झालावाड़ हादसे से क्या सबक मिला?

यह हादसा हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि स्कूल सिर्फ शिक्षा का स्थान नहीं है, बल्कि वह जगह है जहां बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अब समय है कि सरकार और स्कूल प्रबंधन दोनों जागें:

  • सभी स्कूलों की इमारतों का सालाना स्ट्रक्चरल सेफ्टी ऑडिट हो।
  • पुराने और असुरक्षित भवनों को तत्काल खाली कर नई बिल्डिंग का निर्माण किया जाए।
  • स्कूल बसों और वैन की नियमित चेकिंग और ड्राइवर की पृष्ठभूमि जांच सुनिश्चित हो।
  • रेस्क्यू ट्रेनिंग, फायर ड्रिल और आपातकालीन योजना हर स्कूल में अनिवार्य की जाए।
  • सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर सख्त कार्रवाई की जाए।

निष्कर्ष: अब भी न जागे तो...

झालावाड़ की घटना एक चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हमें हर उस खामी को दुरुस्त करना होगा जो इन हादसों की वजह बनती है। वरना हर बार की तरह एक और हादसा होगा, कुछ और मां-बाप अपने बच्चों को खो देंगे, और कुछ दिन बाद हम सब फिर भूल जाएंगे। क्या हम ऐसा देश बनने जा रहे हैं जहां स्कूल जानलेवा साबित होते हैं? जवाब हमें ही देना होगा।

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