प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य लेने पर कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने रामपुर के एसडीएम द्वारा एक शिक्षिका को चुनाव संबंधी कार्य में लगाए जाने और वेतन रोकने के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने शिक्षिका को नियमित वेतन का भुगतान करने का निर्देश भी दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने सहारनपुर की शिक्षिका संयमी शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता नवीन कुमार शर्मा ने दलील दी कि शिक्षिका को चुनाव संबंधी कार्यों में लगाए जाने के कारण उनके शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहे थे और वह छात्रों को पढ़ाने का अपना मूल कर्तव्य निभाने में असमर्थ हो रही थीं।
खंडपीठ का निर्देश
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा सुनीता शर्मा मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया। खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य लेना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
खंडपीठ ने कहा कि बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है। अनिवार्य शिक्षा अधिनियम की धारा 27 के तहत शिक्षकों से सिर्फ जनगणना, आपदा राहत और चुनाव के दौरान सेवाएं ली जा सकती हैं। इसके अलावा कोई भी अन्य कार्य सौंपा जाना अवैधानिक है।
शिक्षा पर प्रभाव की चिंता
कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों का प्राथमिक कार्य छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों को लगाए जाने से उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी बाधित होती है, जो बच्चों के अधिकारों के विपरीत है।
इस निर्णय के बाद उम्मीद की जा रही है कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य लेने की प्रथा पर रोक लगेगी और वे अपने मूल कार्य पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।