इलाहाबाद हाईकोर्ट में शिक्षामित्रों के मानदेय और अन्य मांगों से जुड़े मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई में प्रदेश सरकार की ओर से एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल मनीष गोयल उपस्थित रहे। उन्होंने अदालत में राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए एक एफिडेविट दाखिल किया। इसमें बताया गया कि चार सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को यह छूट दी गई थी कि वह शिक्षामित्रों को पूर्व शर्तों पर कार्यरत रख सकती है। साथ ही, यह भी बताया गया कि शिक्षामित्रों को जो मानदेय ₹3,500 प्रतिमाह मिलता था, उसे बढ़ाकर ₹10,000 किया जा चुका है। समिति ने यह भी उल्लेख किया कि मुख्यमंत्री द्वारा शिक्षामित्रों और उनके परिवार को कैशलेस चिकित्सा सुविधा देने की घोषणा की गई है, जिसका खर्च राज्य सरकार वहन करेगी।
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रिपोर्ट में यह कहा गया कि शिक्षामित्रों के मानदेय में वृद्धि का निर्णय वित्तीय रूप से भारी प्रभाव डालने वाला है, इसलिए इस पर निर्णय केवल कैबिनेट स्तर पर ही लिया जा सकता है। अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि समिति या विभागीय अधिकारी अपने स्तर पर इस संबंध में निर्णय नहीं ले सकते।
अदालत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चूंकि अधिकारी यह कह चुके हैं कि निर्णय कैबिनेट स्तर पर ही लिया जा सकता है, इसलिए यह मामला अब कैबिनेट के पास भेजा जाए। कोर्ट ने कैबिनेट सचिव को निर्देश दिया कि इस विषय पर निर्णय लिया जाए।
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वकील सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि याचिकाकर्ता चाहे तो इस निर्णय को चुनौती दे सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि शिक्षामित्र इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प भी रखते हैं।
वकील ने कहा कि चार सदस्यीय समिति का निर्णय विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण है क्योंकि उत्तर प्रदेश बिजनेस रूल्स 1975 के तहत यह निर्णय कैबिनेट को ही लेना चाहिए था। उन्होंने यह भी बताया कि शिक्षामित्रों के दो समूह हैं – एक टीईटी पास और दूसरा नॉन-टीईटी। इनमें से कई टीईटी पास शिक्षामित्रों ने पहले भी नियुक्ति संबंधी रिट दायर की थी, जिन पर सुनवाई जारी है।
वकील का कहना है कि शिक्षामित्रों का अनुभव और सेवा अवधि यह साबित करती है कि वे योग्य हैं और उन्हें उचित मानदेय मिलना चाहिए। कोर्ट ने भी यह माना कि मानदेय ऐसा होना चाहिए जिससे शिक्षामित्रों का जीवन यापन सुचारू रूप से चल सके।
अब यह मामला कैबिनेट के पास विचारार्थ भेजा गया है। शिक्षामित्र चाहें तो इस आदेश को उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। फिलहाल कोर्ट ने सभी संबंधित कंटेम्प्ट केसों का निपटारा कर दिया है और आगे की कार्रवाई अब सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगी।
फिलहाल कोर्ट ने सभी संबंधित कंटेम्प्ट केसों का निपटारा कर दिया है और आगे की कार्रवाई अब सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगी।
यदि कैबिनेट स्तर पर शिक्षामित्रों के मानदेय बढ़ाने को लेकर सकारात्मक निर्णय लिया जाता है, तो इसका लाभ पूरे प्रदेश के शिक्षामित्रों को मिलेगा।
हालांकि, यदि सरकार निर्णय लेने में देरी करती है या समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही मामला स्थगित रखती है, तो शिक्षामित्रों के पास दो विकल्प रह जाएंगे —
पहला, वे इस निर्णय को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें;
दूसरा, कैबिनेट के निर्णय का इंतजार करें और फिर आगे की विधिक कार्रवाई करें।
वकीलों का मानना है कि समिति की रिपोर्ट में कई विधिक खामियां हैं, जिन्हें अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे को कब रखती है और शिक्षामित्रों के हित में क्या निर्णय लेती है।
राज्य के हजारों शिक्षामित्र इस निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि यह मामला सीधे उनके जीवनयापन और भविष्य से जुड़ा हुआ है।