लखनऊ। उत्तर प्रदेश में संविदा कर्मचारियों के बाद अब शिक्षामित्रों ने भी अपने मानदेय बढ़ाने की मांग को जोर-शोर से उठाया है। शिक्षामित्र कई सालों से सरकार के सामने अपनी बात रखते आ रहे हैं, लेकिन मंगलवार 2 सितंबर को हुई कैबिनेट बैठक में इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई।
पिछले दिनों शिक्षामित्रों के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। तब सीएम योगी ने कहा था कि सरकार शिक्षामित्रों के मामले पर विचार कर रही है, लेकिन अब तक न तो उनके मानदेय में बढ़ोतरी हुई और न ही मूल विद्यालयों में वापसी की प्रक्रिया शुरू की गई।
कई सालों से मानदेय लंबित
प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत करीब 2 लाख से अधिक शिक्षामित्रों का मानदेय कई सालों से लंबित है। फिलहाल शिक्षामित्रों को 10 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता है, चाहे वे शहरी क्षेत्र में कार्यरत हों या ग्रामीण क्षेत्र में। सवाल यह है कि इतनी कम राशि में शिक्षामित्र अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे। कई बार आवेदन देने के बावजूद अब तक सरकार की ओर से कोई सकारात्मक आश्वासन नहीं मिला है।
40 हजार मानदेय और अलग नियमावली की मांग
शिक्षामित्रों का कहना है कि उनके लिए अलग से नियमावली बनाई जाए। इसके तहत सेवा आयु सीमा 62 साल निर्धारित हो और मौजूदा मानदेय को 10 हजार से बढ़ाकर कम से कम 40 हजार रुपये प्रतिमाह किया जाए।