CTET/TET Notes: पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत – बच्चे के मानसिक विकास के चार चरणों की संपूर्ण व्याख्या

बाल मनोविज्ञान में जीन पियाजे (Jean Piaget) का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि बच्चे कैसे सोचते हैं, सीखते हैं और उनके सोचने की प्रक्रिया समय के साथ कैसे विकसित होती है। पियाजे का मानना था कि बच्चे केवल ज्ञान प्राप्त नहीं करते, बल्कि अपने अनुभवों और परिवेश के आधार पर ज्ञान का निर्माण (Construction) करते हैं।

पियाजे का दृष्टिकोण

पियाजे ने कहा कि सीखना और सोचने की प्रक्रिया बच्चे के अनुभव और वातावरण की पारस्परिक क्रिया से विकसित होती है।
उन्होंने बच्चों के बौद्धिक विकास को एक सक्रिय प्रक्रिया माना, जिसमें बच्चा अपने परिवेश के साथ संपर्क में रहकर ज्ञान का निर्माण करता है।

उनके अनुसार, बालक का मस्तिष्क एक "छोटा वैज्ञानिक" है जो हर चीज को समझने का प्रयास करता है और अपनी गलतियों से सीखता है।

संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएँ (Four Stages of Cognitive Development)

1. संवेदी-गामी अवस्था (Sensory Motor Stage) — जन्म से 2 वर्ष तक

इस अवस्था में बच्चा अपने इंद्रियों और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से सीखता है।

  • वस्तु स्थायित्व (Object Permanence) की समझ विकसित होती है।
  • बच्चा धीरे-धीरे यह समझने लगता है कि वस्तुएँ उसके सामने न होने पर भी अस्तित्व में हैं।
  • अनुभव और क्रिया के माध्यम से सीखने की प्रवृत्ति सबसे अधिक होती है।

2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-Operational Stage) — 2 से 7 वर्ष तक

इस अवस्था में बच्चे में कल्पना शक्ति प्रबल होती है।

  • भाषा का विकास तेजी से होता है।
  • बच्चा प्रतीकों (symbols) का प्रयोग करना सीखता है।
  • बच्चे में आत्मकेन्द्रित (Egocentric) सोच होती है, यानी वह दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में कठिनाई महसूस करता है।

3. ठोस संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage) — 7 से 11 वर्ष तक

इस अवस्था में बच्चा ठोस वस्तुओं के संबंध में तर्कसंगत सोच विकसित करने लगता है।

  • संख्याओं, वस्तुओं और घटनाओं में क्रमबद्धता की समझ आती है।
  • संरक्षण (Conservation) की अवधारणा विकसित होती है — यानी किसी वस्तु की मात्रा उसके आकार बदलने पर भी समान रहती है।
  • बच्चा तर्क का प्रयोग ठोस परिस्थितियों में कर सकता है।

4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage) — 11 वर्ष से ऊपर

इस अवस्था में बच्चा अमूर्त (abstract) और काल्पनिक (hypothetical) सोच विकसित करता है।

  • अब वह "क्या हो सकता है" (what if) जैसी परिस्थितियों पर विचार कर सकता है।
  • समस्या समाधान की क्षमता बढ़ती है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।

पियाजे के प्रमुख सिद्धांत (Key Concepts of Piaget’s Theory)

  1. Assimilation (अभिग्रहण) – नई जानकारी को पहले से मौजूद ज्ञान में समाहित करना।
    उदाहरण: बच्चा हर चार पैर वाले जानवर को "कुत्ता" कह देता है।

  2. Accommodation (अनुकूलन) – जब नई जानकारी पुराने ढाँचे में फिट नहीं बैठती, तो बच्चा अपने विचारों को संशोधित करता है।
    उदाहरण: वह सीखता है कि गाय और कुत्ता अलग-अलग जानवर हैं।

  3. Equilibration (संतुलन) – जब बच्चा Assimilation और Accommodation के बीच संतुलन स्थापित करता है, तो वह नई समझ विकसित करता है।

शिक्षा में पियाजे सिद्धांत का महत्व

  • शिक्षक को यह समझना चाहिए कि हर बच्चा अपनी गति से सीखता है।
  • शिक्षण में बच्चों को खोजने और प्रयोग करने के अवसर दिए जाएँ।
  • पाठ्यक्रम को बच्चों की विकासात्मक अवस्था के अनुसार बनाया जाए।
  • शिक्षक को केवल सूचना देने वाला नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में सहायक (Facilitator) होना चाहिए।
  • सीखने में अनुभवात्मक (Experiential Learning) दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
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आलोचना (Criticism)

  • कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पियाजे ने बच्चों की क्षमताओं को कम आंका।
  • उन्होंने सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभावों की भूमिका को पर्याप्त महत्व नहीं दिया।
  • बाद के सिद्धांतकार जैसे व्यगोत्स्की ने इस कमी को पूरा किया।

पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत यह बताता है कि बच्चे धीरे-धीरे, एक निश्चित क्रम में और अपने अनुभवों के आधार पर मानसिक रूप से विकसित होते हैं। यह सिद्धांत आज भी शिक्षाशास्त्र और बाल मनोविज्ञान में अत्यंत उपयोगी माना जाता है।

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