पढ़ाई छोड़ अब क्रिकेट में अंपायरिंग करेंगे अध्यापक! बरेली पुलिस ने BSA को लिखा पत्र

बरेली पुलिस लाइन में होने जा रही 25वीं अंतरजनपदीय पुलिस क्रिकेट प्रतियोगिता ने इस बार एक अनूठा और व्यंग्यात्मक मोड़ ले लिया है। पढ़ाई-लिखाई का भार संभालने वाले सहायक अध्यापकों को अब क्रिकेट की पिच पर एम्पायरिंग के लिए तैनात किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि शिक्षा विभाग ने सोच लिया है कि "चाहे बल्ला चले या चाक, काम करना चाहिए हर हाथ।"

पत्र में लिखी गई विनम्र भाषा से ऐसा प्रतीत होता है जैसे शिक्षा विभाग के पास सचमुच समय और अध्यापकों की कोई कमी नहीं है। एक तरफ सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर अध्यापक, जो बच्चों को क, ख, ग सिखाने के लिए स्कूल जाते हैं, उन्हें अब "नो बॉल" और "वाइड" के फैसले देने के लिए बुलाया जा रहा है।

पढ़ाई का 'रिटायर्ड हर्ट' होना


यह सोचने वाली बात है कि अध्यापक, जिन्हें "ज्ञान का दीपक" माना जाता है, अब "अंपायर की ऊंगली" बन गए हैं। क्या स्कूलों में उनकी अनुपस्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ेगा? या फिर शिक्षा विभाग मानता है कि बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा जरूरी पुलिस की क्रिकेट प्रतियोगिता है?

अध्यापक: हर काम के लिए तैयार

शिक्षा विभाग के अध्यापकों से उम्मीदें अब आसमान छू रही हैं। वे कभी चुनाव ड्यूटी पर तैनात होते हैं, कभी जनगणना में, और अब एम्पायरिंग में। क्या अगली बार उन्हें किसी कुश्ती प्रतियोगिता में रेफरी बनाने का आदेश मिलेगा?


यह व्यंग्य नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है। अगर अध्यापकों को इस तरह गैर-शैक्षणिक कार्यों में व्यस्त रखा जाएगा, तो बच्चों की पढ़ाई का भविष्य क्या होगा? या फिर हमें यह मान लेना चाहिए कि स्कूलों में खेल-कूद और गैर-शैक्षणिक गतिविधियों के लिए यह "व्यवस्थित व्यवस्था" नई नीति का हिस्सा है।

आखिरी सवाल:

क्या एम्पायरिंग करते समय सहायक अध्यापक यह सोचेंगे कि "आउट" दे रहे हैं या शिक्षा व्यवस्था को "रिटायर्ड हर्ट"?

लेखक - निखिल श्रीवास्तव

Post a Comment

Previous Post Next Post